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कविता

रहस्य

राहुल देव


चारों ओर हरीतिमा
धवल कांति से शोभित
कुछ दृश्य !
अद्भुत, अलग
जो पूर्ण हैं स्वयं में
भाव-भंगिमा है असीमित
अभिव्यक्ति से परे;
प्रकाश का उद्गम
उल्लसित करता है मन को
स्रोत क्या है
ज्योतिपुंज के आलोक का ?
क्यों नहीं दीखते दोष
सर्वत्र गुण ही गुण
मधुमिता का गुणगान
सरस-सहज प्रकृति का एकालाप
दिखती है कभी धुँधली सी आकृति
धुँधला आभास
छिपाए क्या है आँचल में,
शाश्वत जगत क्यूँ लिए है जड़ता
क्या है अर्धसत्य
बताओ मुझको समस्त
क्या है प्रकृति का रहस्य !


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